ये ज़रूरी नहीं है की हर बात पर तुम मेरा कहा मानो, दहलीज पर रख दी है चाहत और अब आगे तुम जानो

बरसे बगैर ही जो घटा आकर निकल गयी, एक बेवफा का अहद-ए-वफ़ा याद आ गया

वो पूछती थी अक्सर मैंने समझा नहीं, हम किसी और के हो जाएं तो क्या करोगे?

इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की, आज पहली बार उससे मैंने बेवफ़ाई की

मोहब्बत में सुनो तुम खुद तो बेवफा हो, वह जो बिछड़े तो तुम मर क्यों न गए?

अब के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही, कौन मानेगा कि हम में से बेवफा कोई नहीं

मेरे फन को तराशा है सभी के नेक इरादों ने, किसी की बेवफाई ने किसी के झूठे वादों ने

खुदा ने पूछा क्या सज़ा दूँ उस बेवफ़ा को, दिल ने कहा मोहब्बत हो जाए उसे भी

जाते-जाते उसके आखिरी अल्फाज़ यही थे, जी सको तो जी लेना मर जाओ तो बेहतर है

मिल ही जाएगा कोई ना कोई टूट के चाहने वाला, अब शहर का शहर तो बेवफा हो नहीं सकता