कुछ अपना अंदाज हैं कुछ मौसम रंगीन हैं,
तारीफ करूँ या चुप रहूँ जुर्म दोनो ही संगीन हैं
रोज इक ताज़ा शेर कहाँ तक लिखूं तेरे लिए, तुझमें तो रोज ही एक नई बात हुआ करती है
होश-ए-हवास पे काबू तो कर लिया मैंने, उन्हें देख के फिर होश खो गए तो क्या होगा
हर बार हम पर इल्जाम लगा देते हो मुहब्बत का,
कभी खुद से भी पूंछा है इतनी खूबसूरत क्यों हो
आज उसकी मासूमियत के कायल हो गए, सिर्फ उसकी एक नजर से ही घायल हो गए
Eyes Shayari
कितनी मासूमियत है उनके चेहरे पर, सामने से ज्यादा उन्हें छुपकर देखना अच्छा लगता है
तू जरा सी कम खूबसूरत होती तो भी बहुत खूबसूरत होती
तुझको देखा फिर उसको ना देखा चांद कहता रहा...
मैं चांद हूं, मैं चांद हूं
हुस्न का क्या काम सच्ची मोहब्बत में रंग सांवला भी हो तो यार कातिल लगता है
मुझे मालूम नहीं
हुस्न की तारीफ
मेरी नज़रों में हसीं
वो है जो तुम जैसे हो
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