चलती फिरती आंखों से अजां देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी लेकिन मां देखी है

मुसीबतों ने मुझे काले बादल की तरह घेर लिया, जब कोई राह नजर नहीं आई तो मां याद आई

हर घड़ी दौलत कमाने में इस तरह मशरूफ रहा मैं, पास बैठी अनमोल मां को भूल गया मैं

हम खुशियों में मां को भले ही भूल जाए, जब मुसीबत आ जाए तो याद आती है मां

हालात बुरे थे मगर अमीर बना कर रखती थी, हम गरीब थे यह बस हमारी मां जानती थी

खूबसूरती की इंतहा बेपनाह देखी… जब मैंने मुस्कराती हुई माँ देखी

रूह के रिश्तो की यह गहराइयां तो देखिए, चोट लगती है हमें और दर्द मां को होता है

जब दवा काम नहीं आती है, तब माँ की दुआ काम आती है

जब नींद नहीं आती, तब मां की लोरी याद आती है